भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वसन्त का आना तय है / अशोक शाह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हिन्दी शब्दों के अर्थ उपलब्ध हैं। शब्द पर डबल क्लिक करें। अन्य शब्दों पर कार्य जारी है।

फगुनहट बही है
झड़ रहीं पीत पत्तियाँ
तितलियों-सी उड़ती हुई

फूल कोढ़ियाँ रहें
सोते हुए बच्चों-सा
चादर से सिर निकाल रहे

जड़ें सुगबुगा रहीं
अँगराई लेती हुई
लम्बाई वृक्षों की नाप रहीं

पंडुक अभी बोला है
बलखाती सूर्य-रष्मियों का
द्वार जतन से खोला है

दिषाएँ भी निकल पड़ीं
नभ के उछाह से
दिन के पांव धो रही

रस की धारी पड़ी
हुलसित मन ईख के
पोर-पोर जा चढ़ी

कोयल कहीं तो कूकी है
फ़ाख्ता मुँह खोली है
सनक गयी वातास देखो
साल के गले झूमी है

पतझड़ के कान खड़े हुए
महुए ने इत्र घोला
सेमल कसमसाया है

वसन्त का आना तय है
-0-