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वसन्त का गीत / रमेश रंजक
Kavita Kosh से
बढ़ने लगी धूप की तेज़ी
पढ़ने लगी हवा अँग्रेज़ी
आए दिवस गुलाब के
हिन्दी और हिसाब के ।।
कोयल रटने लगी पहाड़े
बैठ आम की डाल पर
याद हमें भी तो करने हैं
अपने सबक सम्भाल कर
खेल-कूद में डूब न जाएँ
अक्षर कहीं क़िताब के ।
हिन्दी और हिसाब के ।
लाल हरे रंगों से भर दीं
मौसम ने फुलवारियाँ
चित्रकला की कॉपी जैसी
लगी दीखने क्यारियाँ
हम भी फूल सरीखे महकें
मेहनत कर लें दाब के ।
आए दिवस गुलाब के ।।