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वसन्त का स्वागत / हेनरिख हायने
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परियों के मंजीर लगे फिर बोलने,
किरण लगी जल में फिर केसर घोलने ।
मधुऋतु आई, स्यात, गन्ध छाने लगी,
फूलों का सन्देश वायु लाने लगी ।
पत्ती-पत्ती लगी मस्त हो झूमने ।
जाओ मेरे गीत ! जंगल में घूमने ।
हरियाली हो जहाँ वहाँ वन्दन करो,
मधुऋतु की सुषमा का अभिनन्दन करो ।
सभी समागत फूलों को सत्कार दो ।
मिले कहीं पाटल तो उसको प्यार दो ।
हाइनरिष हाइने की कविता का अँग्रेज़ी से अनुवाद : रामधारी सिंह ’दिनकर’