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वसन्त की हवाएँ / रघुवीर सहाय
Kavita Kosh से
और ये वसन्त की हवाएँ
दक्षिण से नहीं चारों ओर खुली-खुली चौड़ी सड़कों से आएँ
धूल, और एक जाना हुआ शब्द
जैसे मेरे लिखे लेख, पत्र, कविताएँ
काग़ज़ के साफ़-साफ़ बड़े-बड़े पेज वहाँ उड़ते हों ।