Last modified on 18 अक्टूबर 2021, at 04:18

वसन्त रात्रि का गीत / एल्वी सिनेर्वो / सईद शेख

जब वसन्त की रात महकती है,
क़ैदी की पोशाक के अन्दर मेरा अंग चीत्कार उठता है
और मेरी उँगलियाँ मिट्टी के स्पर्श के लिए व्याकुल होती हैं
और पैर जैसे जड़ें ज़मीन के लिए छटपटाती हैं,
उस जीव-माँ की सुरक्षा भरी गर्माहट ।

ओ निराशा के नीचे दबी बहिन, सुन :
अब वसन्त है ।
रात को हवा गुनगुना रही है
अनन्त नीला आकाश
ज़मीन से उभरता आ रहा है धारा का कलरव गीत ।

मूल फ़िनिश भाषा से अनुवाद : सईद शेख