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वसुंधरा / रोहित रूसिया
Kavita Kosh से
वसुंधरा-वसुंधरा
अपनी प्यारी वसुंधरा
इसके बिना ना जीवन
आओ सोचें ज़रा
जल से है जीवन में शक्ति
जल ही से खेतों में मस्ती
जल जो ना होगा ज़मी पर
मिट जायेगी अपनी हस्ती
आओ, करें कुछ तो बेहतर
गढ़ लें नए बाँध-पोखर
अगली पीढ़ी के ही ़खातिर
पानी सहेजें ज़रा
धरती ने जीवन दिया है
बदले में कुछ ना लिया है
लालच में पड़कर ही हमने
इसको भी दूषित किया है
आओ, प्रदूषण घटा लें
ऋतुओं को अपना बना लें
बदले ना मौसम बे-मौसम
सुलगे ना अब ये धरा
साँसों के बिन कैसा जीवन
वायु के बिन कैसा उपवन
ना शुद्ध होगी हवा तो
कैसे बचेगा ये गुलशन
आओ, हवा को बचा लें
पौधों को अब भी सँभालें
जीवन बचने की खातिर
जंगल बचा लें ज़रा
वसुंधरा-वसुंधरा
अपनी प्यारी वसुंधरा