वस्त्रों को उतारने से पूर्व
खोलना होगा
एक-दूजे के मन की परतों को
भीतर क्या छुपा है गहराई में
जानना-समझना होगा इसे
होगी बहस और टकराव भी होगा
पर शायद पता चले
आँखों के सामने दिखाई देती है जो राह
कहाँ तक है उसकी दौड़
अपनी-अपनी क़ाबिलियत के मुताबिक़
जिस-तिस की प्रतिक्रियाएँ
सुनी-सुनाई कथाएँ और उप-कथाएँ
क्या ऐसा नहीं सोचा जा सकता है कि
आमने-सामने सीधी-सीधी बात करते हुए
यथासंभव जान ही लें एक-दूजे को ?
मूल मराठी से अनुवाद : सुनीता डागा