भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वस्ल के सब सवाब रहने दो / उदय कामत

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वस्ल के सब सवाब रहने दो
हिज्र के सब अज़ाब रहने दो

तज्रबे मेरे काम आएंगे
सब किताब-ए-निसाब रहने दो

तग-ओ-दौ से नीँद आई मुझे
देखने दो ना ख़्वाब, रहने दो

क़ुफ़्ल होटों पर लग न जाये फिर
वो मुकम्मल जवाब रहने दो

ये ग़लत-फ़हमी है या ख़ुश-फ़हमी
रुख़ पर उनके नक़ाब रहने दो

दूर 'मयकश' से जब ख़िरद वाले
मीना में अब शराब रहने दो