भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वस्ल के सब सवाब रहने दो / उदय कामत
Kavita Kosh से
वस्ल के सब सवाब रहने दो
हिज्र के सब अज़ाब रहने दो
तज्रबे मेरे काम आएंगे
सब किताब-ए-निसाब रहने दो
तग-ओ-दौ से नीँद आई मुझे
देखने दो ना ख़्वाब, रहने दो
क़ुफ़्ल होटों पर लग न जाये फिर
वो मुकम्मल जवाब रहने दो
ये ग़लत-फ़हमी है या ख़ुश-फ़हमी
रुख़ पर उनके नक़ाब रहने दो
दूर 'मयकश' से जब ख़िरद वाले
मीना में अब शराब रहने दो