वस्ल क्या चीज़ है जुदाई क्या? / रमेश तन्हा
वस्ल क्या चीज़ है जुदाई क्या?
दस्तरस क्या है ना-रसाई क्या?
मेरी खुशियों से दोस्ती क्या है
मेरी ग़म से है आशनाई क्या?
मैं कि ज़िंदाने-जिस्म में क्या हूँ
मेरी इस क़ैद से रिहाई क्या?
चलता पानी तो सिर्फ पानी था
ठहरे पानी पे है ये काई क्या?
अभी खुद ही से मैं नहीं निपटा
मेरी तुम से भला लड़ाई क्या?
दिल जलाना था रौशनी के लिए
शमअ तक भी नहीं जलाई क्या?
जब फ़ना तक ही सब को जाना है
रहनुमा कैसा रह-नुमाई क्या?
रहज़नी जिसकी रहबरी सी लगे
ऐसे दिलबर की दिलरुबाई क्या?
सादा-लौही को उसकी क्या कहिये?
ज़हले-मुतलिक कि परसाई क्या?
जिसने आईना तक नहीं देखा
उसने देखा है मेरे भाई क्या?
ज़ात का कर्ब, आगही का धुआं
बस यही है तिरी ख़ुदाई क्या?
बन के सूरज बिख़र गई 'तन्हा'
बस यही है तिरी खुदाई क्या?