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नीवीबन्धोच्छ्वसितशिथिलं यत्र बिम्बाधाराणां
क्षौमं रागादनिभृतकरेष्वाक्षिपत्सु प्रियेषु।
अर्चिस्तुङ्गानाभिमुखमपि प्राप्तरत्नप्रदीपान्
ह्नीमूढानां भवति विफलप्रेरणा चूर्णमुष्टि:।।
वहाँ अलका में कामी प्रियतम अपने चंचल
हाथों से लाल अधरोंवाली स्त्रियों के नीवी
बन्धनों के तड़क जाने से ढीले पड़े हुए
दुकूलों को जब खींचने लगते हैं, तो लज्जा
में बूड़ी हुई वे बेचारी किरणें छिटकाते हुए
रत्नीदीपों को सामने रखे होने पर भी कुंकुम
की मूठी से बुझाने में सफल नहीं होतीं।