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वहाँ कौन है तेरा, मुसाफ़िर, जाएगा कहाँ / शैलेन्द्र

वहाँ कौन है तेरा, मुसाफ़िर ! जाएगा कहाँ ?

दम ले ले घड़ी भर, ये छैयाँ पाएगा कहाँ ?


बीत गए दिन प्यार के पल-छिन

सपना बनी वो रातें

भूल गए वो, तू भी भुला दे

प्यार की वो मुलाकातें

सब घोर अन्धेरा, मुसाफ़िर ! जाएगा कहाँ ?


कोई भी तेरी राह न देखे

नैन बिछाए न कोई

दर्द से तेरे कोई न तड़पा

आँख किसी की न रोई

कहे किसको तू मेरा, मुसाफ़िर ! जाएगा कहाँ ?


कहते हैं ज्ञानी, दुनिया है फ़ानी

पानी पे लिखी लिखाई

है सबकी देखी, है सबकी जानी

हाथ किसी के ना आई

कुछ तेरा न मेरा, मुसाफ़िर ! जाएगा कहाँ ?