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वहाँ जाना चाहती हूँ मैं / अनस्तसीया येर्मअकोवा / अनिल जनविजय

वहाँ जाना चाहती हूँ मैं, बादलों के पास
जहाँ छाती फाड़कर बाहर निकल आता है दिल
वहाँ जाना चाहती हूँ मैं, जहाँ शान्ति है
जहाँ लोग नहीं हैं, हवा है – जीवन के लिए ज़रूरी
वहाँ जाना चाहती हूँ मैं, समुद्र-तटों के पास
जहाँ कभी गई नहीं और जिन्हें कभी जाना नहीं
मैं किसी बात पर विश्वास नहीं करना चाहती
सिर्फ़ काम हों ऐसे, जिन पर विश्वास करूँ मैं।

मूल रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय

लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए
              Анастасия Ермакова
         Я так хочу туда, где облака

Я так хочу туда, где облака,
Где сердце рвется из груди наружу.
Я так хочу туда, где тишина,
Где нет людей, где воздух – самый нужный.
Я так хочу поближе к берегам,
Тем, что еще ни разу не изведал.
Я так хочу не верить никаким словам.
А лишь поступкам верить.

2016