भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वहाँ पत्‍थर के बने हुए महलों के उन / कालिदास

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: कालिदास  » संग्रह: मेघदूत
»  वहाँ पत्‍थर के बने हुए महलों के उन

यस्‍यां यक्षा: सितमणिमयान्‍येत्‍य हर्म्‍यस्‍थलानि
     ज्‍योतिश्‍छायाकुसुमरचितान्‍युत्‍तमस्‍त्रीसहाया:।
आसेवन्‍ते मधु रतिफलं कल्‍पवृक्षप्रसूतं
     त्‍वद्गम्‍भीरध्‍वनिषु शनकै: पुष्‍करेष्‍वाहतेषु।।

वहाँ पत्‍थर के बने हुए महलों के उन अट्टों
पर जिनमें तारों की परछाईं फूलों-सी झिलमिल
होती है, यक्ष ललितांगनाओं के साथ विराजते
हैं। तुम्‍हारे जैसी गम्‍भीर ध्‍वनिवाले पुष्‍कर
वाद्य जब मन्‍द-मन्‍द बजते हैं, तब वे दम्‍पति
कल्‍प वृक्ष से इच्‍छानुसार प्राप्‍त रतिफल
नामक मधु का पान करते हैं।