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वहाँ पर हवाओं के भरने से / कालिदास
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शब्दायन्ते मधुरमनिलै: कीचका: पूर्यमाणा:
संसक्ताभिस्त्रिपुरविजयो गीयतो किन्नरीभि:।
निर्हादस्ते मुरज इव चेत्कन्दरेषु ध्वनि: स्या-
त्संगीतार्थो ननु पशुपतेस्तत्र भावी समग्र:।।
वहाँ पर हवाओं के भरने से सूखे बाँस
बजते हैं और किन्नरियाँ उनके साथ कंठ
मिलाकर शिव की त्रिपुर-विजय के गान
गाती हैं। यदि कन्दराओं में गूँजता हुआ
तुम्हारा गर्जन मृदंग के निकलती हुई ध्वनि
की तरह उसमें मिल गया, तो शिव की
पूजा के संगीत का पूरा ठाट जम जाएगा।