भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वहां दूर क्यों खड़े है, पास आइए / सांवर दइया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वहां दूर क्यों खड़े है, पास आइये।
अब सारे सबूत लेकर साथ आइये।

आप कहते हैं यहां भोर होगी नहीं,
मान लेंगे सूरज की लाश दिखाइये!

हर कोई डूब रहा इस घाट पर आज,
सुनिये, यहां पहरे कुछ खास लगाइये!

बात करने की तमीज़ भी सीख लेंगे,
इतनी दूर क्यों रखा, पास बुलाइये!

कुछ सांसें सलीब पर भी नहीं झुकेंगी,
वहां बैठे आप बस क़यास लगाइये!