भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वहां भिलाई में / शहंशाह आलम

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वहां भिलाई में गूंथा जा रहा है आटा
यहां पटना में भी तो चल रही है तैयारी रोटी पकाने की

वहां कोहिमा में गिरता है बारिश का पानी
तो तुम्हारे यहां भी तो आता है आषाढ़

वहां राउरकेला में लिखी जा रही हैं कविताएं
तो डिब्रूगढ़ से भी कविताएं आ रही हैं छपकर

वहां बनारस में भोर-सूर्य को किया जा रहा है नमन
तो पश्चिम बंगाल में भी दिख रहा है सूरज लाल

जो तुम्हारी घड़ी में बज रहा है
जो तुम्हारे हृदय में धड़क रहा है
जो तुम्हारी मुंडेर पर कांय-कांय कर रहा है
वही सब कुछ घट रहा है हमारे यहां भी यारा

अब बोलो तुम्हीं कि
तुम्हारी रगों में दौड़ रहा है रक्त
तो उस पागल स्त्री की नसों में
दौड़ता है क्या