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वहीं हों मंजिलें जिस ओर रास्ता जाये / रंजना वर्मा

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वहीं हों मंजिलें जिस ओर रास्ता जाये।
बिना तुम्हारे कहो किस तरह जिया जाये॥

रकीब बन के रहे इश्क़ में खड़े कितने
मगर सभी से नहीं दुश्मनी किया जाये॥

क़रार खोया किये इंतज़ार की रौ में
शमा के साथ पतंगा यहाँ जला जाये॥

मुसीबतों में सदा साथ-साथ रहते हैं
नदी के साथ किनारों का सिलसिला जाये॥

अमीर बन के रहें या तरस-तरस के जियें
वही मिलेगा मुक़द्दर में जो लिखा जाये॥

जमीं में हमने जो बोया था वही तो काटा
नसीब को भी भला दोष क्यूँ दिया जाये॥

निग़ाह ख़ुश्क़ लबों पर हैं जब्त के ताले
जो दर्द दिल ने सहा किस तरह कहा जाये॥