वही जीवन फिर से / असद ज़ैदी
कितने लोग हैं इस दुनिया में जिन्होंने गाहे बगाहे
रोककर कभी मुझसे कहा — ऐ भैया ... !
किसी ने बस रास्ता पूछा एक औरत ने आधी रोटी माँगी
या कहा कि बीमार है छोरी, किसी डागदर से मिलवा दे
किसी ने इसलिए पुकारा कि मुड़के देखूँ तो मेरी शक़्ल देख सके
आँखें मिचमिचाए और कहे भैया तू कहाँ कौ है
इनमें से कुछ तो कभी के गुज़र गए कुछ अभी हैं
कैसे जानूँ कौन भूत है कौन अभूत
दानिश को इससे क्या कि सब रस्ते में हैं
दो पीढ़ी बाद अक्सर कोई बता नहीं पाता मामला क्या था
जिस रजिस्टर में टूट-फूट दर्ज हुई वह बोसीदा हो चला
काग़ज़ भी तो जैविक चीज़ है
स्याही-क़लम-दवात से बहुत कुछ लिखा गया
01010101 में तब्दील नहीं हुआ और जान लीजिए
काग़ज़-पत्तर भले कुछ बचे रहें 01010101 को छूमन्तर होते
ज़रा देर नहीं लगेगी
मरणशीलों में सबसे मरणशील है यह बाइनरी कोड
दुनिया के अन्त के बारे में कोई नहीं जानता
सब उसके आरम्भ के पीछे पड़े रहते है धर्म हो चाहे वाणिज्य और विज्ञान
मिल-जुल के हम सब सबकुछ तबाह किए दे रहे हैं इस विनाश की सामाजिकता
इसका मर्म इसके भेद अभेद ज़रूर किसी दैवी मनोरंजन का मसाला हैं
तुम देख लो सभी तो यहाँ बैठे हैं सारे यज़ीद,
फ़िरऔन, क़ारून, इबलीस, दज्जाल… तुम पूछती थी या अल्लाह क्या अब
हमारा क़ब्रिस्तान भी हमसे छीन लिया जाएगा
वक़्त आने पर मैं कहाँ जाऊँगी …
ऐसी ही मरी रहना अब, मेरी आपा
सुकून की नींद भी ऐसी ही होती है
बना रहेगा तुम्हारा कथानक वैसा जैसा कि तुम छोड़कर गईं
और न आना जीने के लिए वही जीवन फिर से
22.11.2017