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वही झुकी हुई बेलें वही दरीचा था / शकेब जलाली
Kavita Kosh से
वही झुकी हुई बेलें वही दरीचा था
मगर वो फूल-सा चेहरा नज़र न आता था
मैं लौट आया हूँ ख़ामोशियों के सहरा से
वहाँ भी तेरी सदा का ग़ुबार फैला था
क़रीब तैर रहा था बतों का एक जोड़ा
मैं आबजू के किनारे उदास बैठा था
[बत - बतख]
बनी नहीं जो कहीं पर कली की तुर्बत थी
सुना नहीं जो किसी ने हवा का नौहा था
[तुर्बत = कब्र; नौह = दुख भरा गीत]
ये आड़ी-तिर्छी लकीरें बना गया है कौन
मैं क्या कहूँ कि मेरे दिल का वरक़ तो सादा था
[वरक़ = पन्ना]
उधर से बारहा गुज़रा मगर ख़बर न हुई
कि ज़ेर-ए-सन्ग ख़ुनुक पानियों का चश्मा था
[बारहा = बार-बार]
[ख़ुनुक = ठन्डा; चश्मा = झरना]
वो उस का अक्स-ए-बदन था कि चांदनी का कँवल
वही नीली झील थी या आसमाँ का टुकड़ा था