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वही तुम / दुःख पतंग / रंजना जायसवाल

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इसी दिन
इसी नदी के किनारे
तुम बोलते रहे
मैं ताकती रही तुम्हारे
अधर
उमड़ती रही नदी
मेरे भीतर

आज वही
नदी का किनारा है
वही तुम
पर
मेरे भीतर की नदी क्यों
नहीं उमड़ती?