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वही दश्त-ए-बला है और मैं हूँ / मज़हर इमाम
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वही दश्त-ए-बला है और मैं हूँ
ज़माने की हवा है और मैं हूँ
तुझे ऐ हम-सफ़र कैसे सँभालूँ
पहाड़ी रास्ता है और मैं हूँ
सुकूत-ए-कोह है और साया-ए-दर
सदा-ए-मा-सिवा है और मैं हूँ
मगर शाख़ो से पते गिर रहे हैं
वही आब-ओ-हवा है और मैं हूँ
ये सारी बर्फ़ गिरने दो मुझी पर
तपिश सब से सिवा है और मैं हूँ
कई दिन से नशेमन ख़ाक-ए-दिल का
सर-ए-शाख़-ए-हवा है और मैं हूँ
पहाड़ो पर कहीं बारिश हुई है
ज़मी महव-ए-दुआ है और मैं हूँ
मुझे भी कुछ न कुछ करना पड़़ेगा
ज़माना सर-फिरा है और मै हूँ