भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वही बात / प्रतिभा कटियार
Kavita Kosh से
उनके पास थीं बंदूकें
उन्हें बस कंधों की तलाश थी,
उन्हें बस सीने चाहिए थे
उनके हाथों में तलवारें थीं,
उनके पास चक्रव्यूह थे बहुत सारे
वे तलाश रहे थे मासूम अभिमन्यु
उनके पास थे क्रूर ठहाके
और वीभत्स हँसी
वे तलाश रहे थे द्रौपदी
उन्होंने हमें ही चुना
हमें मारने के लिए
हमारे सीने पर
हमसे ही चलवाई तलवार
हमें ही खड़ा किया ख़ुद
हमारे ही विरुद्ध
और उनकी विजय हुई हम पर
उन्होंने बस इतना कहा
औरतें ही होती हैं
औरतों की दुश्मन, हमेशा...