वही रोज़ मिलना वही चार बातें / मधुभूषण शर्मा 'मधुर'
वही रोज़ मिलना वही चार बातें ,
कि लगती नहीं फिर भी बेकार बातें !
चले दोस्तों में वही रोज़ किस्से ,
ये कह कर करें आ नई यार बातें !
कभी बात ही बात में उठते पर्दे ,
कि बनतीं कई बार दीवार बातें !
गई हैं पहुंच अब ये किस मरहले पर ,
हुईं शर्म से क्यूं ये गुलनार बातें !
बढ़ाओ न बातों को अब और ज़्यादा ,
कहीं मर न जाएं ये बीमार बातें !
चलो दोस्तो अब चलें अपने घर को ,
कि लगने लगा है गईं हार बातें !