भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वही है धरा वही है अम्बर / गुलाब खंडेलवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


वही है धरा वही है अम्बर
वही चाँद सूरज तारे हैं केवल मैं न कहीं पर

मन चेतन शक्ति अमर है
जड़ भी जिसका रूपांतर है
पर मेरी अस्मिता किधर है
जो थी इसमें भास्वर

रहे न कोई अब चिंता-भय
सारे मोह-शोक भी हों लय
किन्तु मुझे तो नाम-रूपमय
जीवन ही था प्रियतर

यदि मेरी सत्ता न बची है
तूने क्यों यह सृष्टि रची है ?
मुझसे भी पूछा कि जँची है
मुक्ति भुक्ति से बढ़ कर