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वह आग न जलने देना / रमानाथ अवस्थी

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जो आग जला दे भारत की ऊँचाई,
वह आग न जलने देना मेरे भाई ।

तू पूरब का हो या पश्चिम का वासी
तेरे दिल में हो काबा या हो काशी
तू संसारी हो चाहे हो संन्यासी
तू चाहे कुछ भी हो पर भूल नहीं
तू सब कुछ पीछे पहले भारतवासी ।

उन सबकी नज़रें आज हमीं पर ठहरीं
जिनके बलिदानों से आज़ादी आई ।

जो आग जला दे भारत की ऊँचाई,
वह आग न जलने देना मेरे भाई ।

तू महलों में हो या हो मैदानों में
तू आसमान में हो या तहखानों में
पर तेरा भी हिस्सा है बलिदानों में
यदि तुझमें धड़कन नहीं देश के दुख की
तो तेरी गिनती होगी हैवानों में ।

मत भूल कि तेरे ज्ञान सूर्य ने ही तो
दुनिया के अँधियारे को राह दिखाई ।

जो आग जला दे भारत की ऊँचाई,
वह आग न जलने देना मेरे भाई ।

तेरे पुरखों की जादू भरी कहानी
गौतम से लेकर गाँधी तक की वाणी
गंगा जमना का निर्मल-निर्मल पानी
इन सब पर कोई आँच न आने पाए
सुन ले खेतों के राजा, घर की रानी ।

भारत का भाल दिनों-दिन जग में चमके
अर्पित है मेरी श्रद्धा और सचाई ।

जो आग जला दे भारत की ऊँचाई,
वह आग न जलने देना मेरे भाई ।

आज़ादी डरी-डरी है आँखें खोलो
आत्मा के बल को फिर से आज टटोलो
दुश्मन को मारो, उससे मत कुछ बोलो
स्वाधीन देश के जीवन में अब फिर से
अपराजित शोणित की रंगत को घोलो ।

युग-युग के साथी और देश के प्रहरी
नगराज हिमालय ने आवाज़ लगाई ।

जो आग जला दे भारत की ऊँचाई,
वह आग न जलने देना मेरे भाई ।