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वह इच्छा है मगर इच्छा से कुछ और अलग / पंकज सिंह

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वह इच्छा है मगर इच्छा से कुछ और अलग

इच्छा है मगर इच्छा से ज़्यादा

और आपत्तिजनक मगर ख़ून में फैलती

रोशनी के धागों-सी आत्मा में जड़ें फेंकती


वह इच्छा है

अलुमुनियम के फूटे कटोरों का कोई सपना ज्यों

उजले भात का


वह इच्छा है जिसे लिख रहे हैं

खेत-मज़दूर, छापामार और कवि एक साथ


वह इच्छा है हमारी

जो सुबह के राग में बज रही है


(रचनाकाल:1980)