वह उसकी सिहरती देह में
बोता जाता है अनेक स्पर्श
अपनी ही आभा की झील में
डूब रहा है
चाकू-सा पैना चन्द्रमा
वह अँधेरे कमरे में
चुपचाप उठकर खोजती है
कहाँ गिर गया वह कनफूल !
वह उसकी सिहरती देह में
बोता जाता है अनेक स्पर्श
अपनी ही आभा की झील में
डूब रहा है
चाकू-सा पैना चन्द्रमा
वह अँधेरे कमरे में
चुपचाप उठकर खोजती है
कहाँ गिर गया वह कनफूल !