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वह एक पल / पृथ्वी: एक प्रेम-कविता / वीरेंद्र गोयल

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डूबा गहरे तक
तलहटी में
सुप्त पड़ा था काल
निश्चल थे
अपने से अलग
जागना था
आने वाले समय में
बताने को गुजरा हुआ
पर ये कैसे हुआ
नाप लिए तीनों काल
एक ही बार में
तुम पहली
और आखिरी बार
लहराईं आँखों में
क्योंकि उसके पार
था शून्य
देखा था जो
हवा की आँखों से।