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वह कवि था, कवियों में रवि था / केदारनाथ अग्रवाल
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वह कवि था, कवियों में रवि था,
- मन से पंकज, तन से पवि था,
वह अपने युग का युगपति था,
- गति के पार गई वह गति था,
वह मानव का मानी स्वर था,
- कालजयी वह धार प्रखर था,
वह जन के जीवन का दल था,
- वह आलोकित नेह नवल था,
वह न रहा युग मौन हो गया
- वह न रहा छवि गान सो गया
अब किरणों की माल म्लान है
- खंडित फूलों की कमान है ।
यह भी क्या कटु विधान है
- पा न सका कवि मान पान है ।
दुर्मुख अंधों का शासन है
- कनबहरों का सिंहासन है ।