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वह कैसा होगा कल / अवधेश्वर प्रसाद सिंह

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वह कैसा होगा कल।
जब दुर्लभ होगा जल।।

जल बिन कंठ सूखेगा।
नहीं बचेगा जब ढनटल।।

जागेंगे जब जन-गण-मन।
बच न सकेंगे कोई दल।।

उजड़ रहा है वन-बैभव।
रोक रहे गंगा कल-कल।।

पर्वत आज हुआ बंजर।
आक्सीजन घटता पल-पल।।

मुश्किल बचना प्राण यहाँ।
सूखे अब अँखियन काजल।।