भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वह गा रही है / प्रेमशंकर शुक्ल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वह गा रही है

अपने अंचल का गीत


गीत में गूँज रहे हैं :
स्पंदित पेड़
मिट्टी की महक
पानी की मिठास

वह गा रही है

मगन मन ऎसे

जैसे भेंटी हो

बहुत दिनों बाद

अपनी माँ से।