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वह जानती है / इधर कई दिनों से / अनिल पाण्डेय

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वह सिखाती है
जीवन जीने के लक्षण
बताती है तरीके सलीके से
ढली होती है हर परिभाषा में
ढालना किस स्थिति में, वह जानती है

वह जानती है
दाल में नमक का समीकरण
हल्दी का समन्वय
पानी की मर्यादा
बताती है वह आग की औकात

वह मानती है
किसी एक की कमी
सौंदर्य की खनक में डालती है खलल
किरकिरी होती है भरी सभा में
हाथ की कारीगरी पर हँसते हैं लोग

वह जानती है
हँसते हैं वही जिन्हें समझ नहीं होती
आग की आंच चूल्हे की तपिस
रसोईं की मर्यादा की सनद नहीं होती
होती तो सीखते सौन्दर्यनुपात के गुण

यह भी उसे पता है
कैसे खुश रखना है सबको
घर से लेकर बाहर तक
जर से लेकर जमीन तक
जानवर से लेकर जीवन तक

अफ़सोस है उसे
नहीं बुलाता कभी कोई
कि अपना अनुभव वह किसी को बताए
कि चुनाव करे किसी योग्य की योग्यता का
कि सिखाए समाज को जीवन का सौंदर्य
जैसे पता होता है उसे
गुण-अवगुण योग्यता से नहीं
आँके जाते हैं चमक-दमक से

वह नहीं जो ईश्वर से मिलती है
वह, जो बाजार में सरेआम बिकती है I