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वह जो असंभव है / मनोज श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
वह जो असम्भव है...
पेशेवर बलात्कारियों के ब्रह्मचारी होने पर टिकी है
संवासिनियों की शुचिता और
कन्याओं का कुमारी,
आदत से लाचार आदमखोरों के शाकाहारी होने पर टिका है
नागरिकों का अस्तित्त्व,
पुश्तैनी जमाखोरों के कर्ण बनने पर टिका है
गरीबी और भुखमरी का उन्मूलन,
चिरशापित रेगिस्तानों के उर्वर होने पर टिका है
किसानों का भविष्य,
खंडहरों के कारखानों में बदलने पर टिका है
बेकारी का सफाया,
लाइलाज पागलों के विवेकशील होने पर टिका है
सामाजिक और सांस्कृतिक उत्थान,
नागों के अमृतधारी होने पर टिका है
अच्छाइयों की जिजीविषा,
तूफान की दया पर दीपक के न बुझने पर टिका है
उजाले का ख्वाब,
बियांबों से भूत-प्रेतों के निष्कासन पर टिका है
अमन-चैन और सुकून.