वह जो फ़ेसबुक का साथी है / दिनकर कुमार
वह जो फ़ेसबुक का साथी है
किसी मशीन की तरह
या किसी बहुरूपिए की तरह
वह अपनी कुँठाएँ उड़ेलता है
जब वह बिलकुल अकेला होता है
कुछ भद्दी ग़ालियाँ देते हुए कल्पना करता है
कि इस तरह बदल जाएगा समूचा तंत्र
वह जो फ़ेसबुक का साथी है
बनावटी हैं उसकी भावनाएँ
वह जब करुणा की बातें करता है
उसके सीने में सुलगती रहती है घृणा
वह जब प्रेम दर्शाना चाहता है
जाहिर हो जाती है उसकी आत्मदया
वह जो फ़ेसबुक का साथी है
देखते ही देखते वह नज़र आने लगता है
बेजान बिजूका की तरह
उसकी आकृतियाँ गड्ड-मड्ड होने लगती हैं
वह बुद्धि-विलास को ही समझता है क्राँति
वह मदिरापान करने के बाद
दार्शनिक बन जाता है
जीवन में पिट जाने पर कायर बन जाता है
वह उतना ही खोखला है
जितना कोई बेजान डिब्बा हो सकता है
वह उतना ही संवेदन-शून्य है
जितना कोई यंत्र हो सकता है ।