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वह जो बताती है / मनमोहन
Kavita Kosh से
अपने दुखों के साथ अकेले रहती
वह यहाँ तक चली आई है
कि बाक़ी सब भूल गया है
कई बार जब वह कुछ कहती है
तो अपना कमाया सच कहने की तकलीफ़
और अपनी विफ़लताओं के अभिमान की सुन्दरता
एक साथ उसके चेहरे पर आ जाती है
कभी कुछ कहते-कहते यूँ ही
उसकी आवाज़ भीग जाती है
उसे ठिठके हुए लमहे में
वह यही बताती है
कि अपने दुखों पर से उसका भरोसा
अभी उठा नहीं है
और सामने वाले को आज़ाद कर देती है