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वह जो बस बात ही बनाते हैं / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
वो जो बस बात ही बनाते हैं।
देश चुपचाप बेच जाते हैं॥
रक्षकों को बता रहे दुश्मन
शत्रु को जो करीब लाते हैं॥
भूमि अपनी वतन नहीं अपना
कौन-सा ये गणित लगाते हैं॥
त्याग देते हैं अपनी माता को
वालिदा गैर को बुलाते हैं॥
मानते ही नहीं मुकद्दर को
रोज़ अपना चलन चलाते हैं॥
खून में है बसी दग़ाबाज़ी
दूसरों को वफ़ा सिखाते हैं॥
चोर डाकू बहुत भले फिर भी
कोष बाहर न भेज पाते हैं॥