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वह दिन भी आएगा ज़रूर / रामगोपाल 'रुद्र'
Kavita Kosh से
वह दिन भी आएगा ज़रूर मन! हार न रे!
दुर्दिन में ऐसी हलचल तो होती ही है,
दुश्शासन-धृत द्रौपदी-शान्ति रोती ही है;
अन्नमय कोश ही जब तक सब कुछ रहता है,
सौन्दर्य-सत्य का साधक सब कुछ सहता है;
इसलिए, टूटकर हो न चूर मन, हार न रे!
माना, आगे हैं प्राण-मनोविज्ञान-कोश
लम्बी यात्रा है फिर भी, अपना सही होश,
आनन्द-लाभ तक, मनुज नहीं खो सकता है;
धावे में बेसुध नींद नहीं सो सकता है;
वह आसमान भी नहीं दूर मन, हार न रे!