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वह द्रोपदी नहीं थी / सुदर्शन रत्नाकर
Kavita Kosh से
गूँजती रही उसकी आवाज़
रात भर
उन सुनसान गलियों में
तैरती रहीं चीखें हवा में
पर उसे बचाने कोई
कृष्ण नहीं आया
आता भी कहाँ से
वह तो व्यस्त था
अपनी द्वारिका में
और
लोग अँधे-बहरे बन सोते रहे।
शायद कोई आ भी जाता
पर वह कोई द्रोपदी नहीं थी
जिसकी आवाज़ कृष्ण तक
पहुँच भी जाती
वह लाचार पीड़िता तो
अव्यस्क दलित बाला थी।