भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वह नहीं आई / उदयन वाजपेयी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वह नहीं आई
शाम निःशब्द वापस लौट गई

खिड़की से कमरे में आने लगा
काँपता हुआ चौकोर अंधेरा
वह कुछ देर बरामदे में टहलता रहा
फिर रुके पंखे के नीचे जाकर लेट गया

एक बूढ़ी औरत की तरह
बिस्तर की किनार पर बैठी कविता
उसका माथा सहलाती इन्तज़ार करती है
पिछले दरवाज़े से मृत्यु के आने का