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वह नहीं आई / उदयन वाजपेयी
Kavita Kosh से
वह नहीं आई
शाम निःशब्द वापस लौट गई
खिड़की से कमरे में आने लगा
काँपता हुआ चौकोर अंधेरा
वह कुछ देर बरामदे में टहलता रहा
फिर रुके पंखे के नीचे जाकर लेट गया
एक बूढ़ी औरत की तरह
बिस्तर की किनार पर बैठी कविता
उसका माथा सहलाती इन्तज़ार करती है
पिछले दरवाज़े से मृत्यु के आने का