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वह पूछेगा / अमृता भारती

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वह पूछेगा

कहाँ गया वह मन
जो खिड़कियों को रोशन किया करता था
कहाँ गया वह पथ
जिस पर
तेरे पैरों के निशान थे

वह पूछेगा

कहाँ गया वह जीवन
जिसमें
एक चित्र अंकित था
शिखरों से नीचे उतरते
आकाशों का —

क्यों
स्वप्न की संचरणशील ज्योति
खो गई
यथार्थ के गलियारों में ?

वह पूछेगा

’शब्द’ की अनुगूँज से
क्यों नहीं ठिठके तेरे क़दम ?

और अब
सूखे वृक्ष की बाँह पकड़
खड़ी है तू
एक अघटित घटना-सी

वह पूछेगा ।