वह प्याला भर साक़ी सुंदर,
मज्जित हो विस्मृति में अंतर,
धन्य उमर वह, तेरे मुख की
लाली पर जो सतत निछावर!
जिस नभ में तेरा निवास
पद रेणु कणों से वहाँ निरंतर
तेरी छबि की मदिरा पीकर
घूमा करते कोटि दिवाकर!
वह प्याला भर साक़ी सुंदर,
मज्जित हो विस्मृति में अंतर,
धन्य उमर वह, तेरे मुख की
लाली पर जो सतत निछावर!
जिस नभ में तेरा निवास
पद रेणु कणों से वहाँ निरंतर
तेरी छबि की मदिरा पीकर
घूमा करते कोटि दिवाकर!