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वह फूल / अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
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धूल सिर पर उड़ा उड़ा कर के।
है उसे वायु खोजती फिरती।
है कभी साँस ले रही ठंढी।
है कभी आह ऊब कर भरती।1।
हो गयी गोद बेलि की सूनी।
है न वह रंग बू न तन है वह।
बे तरह हैं खटक रहे काँटे।
पत्तियों में कहाँ फबन है वह।2।
इस तरह फिर रही तितलियाँ हैं।
हों किसी के लिए दुखी जैसे।
है ललक वह न ढंग ही है वह।
हैं न भौंरे उमंग में वैसे।3।
है किरण आसमान से उतरी।
पर कहाँ आज रंग लाती है।
मिल गले खेलती रही जिससे।
अब उसे देख ही न पाती है।4।
बाग जिस फूल के मिले महँका।
फूल वह तोड़ ले गया कोई।
ओस आँसू बहा बहा करके।
रात उसके लिए बहुत रोई।5।