भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वह बोल रही थी / उदयन वाजपेयी
Kavita Kosh से
वह बोल रही थी
वह उसके वाक्यों से व्याकरण की
ग़लतियों को चुन-चुन कर
आकाश में एक ख़ास तरतीब से जमाता जा रहा था
चुपचाप
अब न जाने कब सूर्योदय होगा
अब न जाने कब नींद के अदृश्य रेशों से
वह बाहर झाँकेगी और पढ़ेगी
आकाश के विजन में उच्चारित
एक प्रेम-वाक्य !