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वह राक्षसी उजाला / बाबू महेश नारायण
Kavita Kosh से
वह राक्षसी उजाला,
बहके हुए मनुष्य को करती है जो तबाह
मैदान पुर खतर में
वाँ भी चमक भुलावनी अपनी दिखाती थी।
ज़िन्दगी में बहुत ऐसी ही चमकती हुई चीज़
जीव अनमोल को करती है हक़ीर बो नाचीज़।
जुगनूं थे चमकते डालों पर,
जस मोती काले बालों पर,
जस चन्दन बिन्दु दीख पड़ें
श्यामा अबला के गालों पर।
भौतिक सी कीर्ति
आती थी नज़र
व्यापार अचम्भा
देखो तो बराबर।
अजायब!
अपार!!