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वह शख़्स(2) / शमशेर बहादुर सिंह

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मौन
वह उर में -एक
घुटी हाय-सा कसा।
अन्त तक जो फिर, क्रूर
विषम घास -सा बसा।
केवल तम वह,एक
मौन
धूम-
एक छल-क्रम वह।
व्यर्थ
पांथ-अनादर भाव,
जो छिप-छिप कर हँसा
अन्दर-अन्दर।