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वह स्त्री / रंजना जायसवाल
Kavita Kosh से
बाहर जाने से पहले
कई बार ताले को
खींचकर देखती
रात में बार-बार उठकर
बंद दरवाजों को टटोलती
किसी पड़ोसन के आने पर
सशंकित रहती
वह स्त्री
सो रही है आज ‘बेफिक्र’
सारी चिंताएँ
क्या जीने के लिए होती हैं?