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वह है / अशोक वाजपेयी
Kavita Kosh से
इस रात में
वह चन्द्रमा है।
इस रास्ते पर
वह घर है।
इस हवा में
वह डोलता वृक्ष है।
इस पानी में,
वह गहरे डूबी अविचल चट्टान है।
इस दरवाज़े पर
वह अदृश्य उँगलियों की छाप है।