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वह / विनोद दास
Kavita Kosh से
वह रोज़
एक पुराने संदूक से
नए और तह किए कपड़े निकालती
और सोचती कि इसे उस दिन पहनेगी
थोड़ी देर बाद उसी संदूक में
फिर उन कपड़ों को तहा कर रख देती
जब होती कहीं पास-पड़ोस में शादी
उसे चढ़ आता बुख़ार
और दर्द से
उसकी देह ऎंठने लगती
वह सोने से पहले
हर रात देखती एक सजा घोड़ा
जो आकाश से उतरता था
और उसे दूर ले जाता था
उसने शीशे में देखे एक दिन
अपने सिर में कई पके बाल
उस रात घोड़ों की टापों ने
उसे रौंद डाला।