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वाक्य / तेजी ग्रोवर
Kavita Kosh से
मेज़ के नीचे हमारे पैरों को गलाते हुए वे ऊपर चढ़ते,
जहाँ कभी-कभी पन्ने होते थे।
होने के सारे विन्यास उन वृक्षों की ओर मुँह फेर लेते जो
हमारी स्मृति में लताओं के नीचे अब भी दहकते थे। हम
दरख़्तों का नशा करने लगे थे, उन कोमल हवाओं का जो
हमारे सोचते ही उनमें बन उठती थीं।
नीली घास में सोए हम नीले आसमान में उड़ते हुए कौओं
का नशा करने लगे थे। वे धीमे-धीमे उड़ते थे, हमारे प्रेम
की जगह।
जैसे सेमल के दरख़्त से छूटे फाहे सियाह पड़ गए हों।