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वाटिका उदास ये / प्रेमलता त्रिपाठी

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लिए मशाल हाथ में,सस्नेह धार दे चलो ।
दिशा विहीन हैं युवा, उन्हें विचार दे चलो ।

जियें स्वदेश के लिए,मरे स्वदेश के लिए,
अधर्म कर्म भ्रांति को,मिटा सुधार दे चलो।

मिलें न जीत जो तुम्हें,चिता जले न धर्म की,
पुनीत भावना रहे,विशुद्ध प्यार दे चलो ।

अगम्य भी सुगम्य हो,सुपंथ साधने हमें,
विलासिता मिटे सदा,दिशा निखार दे चलो।

सुजान हम अजान हों,न वाटिका उदास ये,
कली गली खिली रहे, सदा बहार दे चलो।

न जीत कारवाँ रुके,न हो हतास भी कभी,
न स्वार्थ हंत रोपना,सुवेग सार दे चलो!

अलीक लीक से परे,विनाश है न सोचिए,
मिटे विकार प्रेम से, सुगंध द्वार दे चलो!